IBM की स्थापना 1911 में हुयी थी और आने वाले सालो में कंपनी इतनी बड़ी बन गयी की इसे बिग ब्लू कहा जाने लगा। दरसल नई यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के चुनिंदा ब्लू स्टॉक थे और उनमे से एक IBM भी थी। दुनिया में सबसे बड़ी कम्पनीस में इसका नंबर आठवा होता था। भारत में IBM की एंट्री हुयी साल 1952 में। प्रधानम्नत्री जवाहरलाल नेहरू भारत में उन्नत तकनीक को लाना चाहते थे इसलिए उन्होंने IBM को भारत आने का न्योता दिया। शरुआत में कंप्यूटर का काम गिना चुना होता था इसलिए इनका काम IIT या IIM में रिसर्च के कामो के लिए ज्यादा होता था।
अगले दो दशकों तक सब कुछ ठीक ठाक चला फिर साल 1973 में सरकार ने फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट FERA वाले कानून में कुछ संशोधन कर लिए। इसके अनुसार विदेशी कम्पनियो को भारत में कारोबार करने के लिए किसी भारतीय कंपनी को ६०% हिस्सेदार देना अनिवार्य कर दिय गया। यानि मालिकाना हक़ भारतीय कंपनी के पास रहेगा। लगभग इसी समय IBM का भारतीय रेलवे के साथ कई गड़बड़िया पायी गयी जिसके चलते संसद की पब्लिक अकाउंट कमिटी यानि PAC ने IBM पर एक जाँच बिठायी। PAC के हेड होते थे हीरेन्द्र नाथ मुखर्जी।
उन्होंने पाया की IBM सरकार को उल्लू बना रही है। उस दौर में भारत में 200 कंप्यूटर से जयादा नहीं हुआ करते थे और उनमे से 160 IBM के बस थे जिन्हे IBM ने भारत में लीज पे दिया। इसके लिए IBM प्रति महीना 1 कंप्यूटर का 50000 किराये का वसूलती थी। सोचिये तब के ज़माने में 50000 की वैल्यू क्या रही होगी। चूँकि ये सब अमेरिका से मंगा कर पुणे के प्लांट में तैयार किये जाते इसलिए मार्जिन का कही होइ हिसाब नहीं था की कितना कमा ले रहे है ये लोग। मतलब अमेरिकन IBM भारत हिस्से को मशीन बेचती और इसमें जो मुनाफा होता उसे बिलकुल सीक्रेट रखा जाता। जिसकी सरकार को कोई भनक नहीं थी।
सरकार का शक तब बढ़ा जब पता चला की अमेरिका से पुराने और बेकार मशीन को भारत में किराये पर दे रही थी। अमेरिका में जिन मशीन को जंक बता कर फेक दिया जाता था उनसे कंपनी भारत में लाखो कमा रही थी। भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक के अनुसार हर ऐसी मशीन कंपनी को 300 फीसदी मुनाफा हो रहा था। डिपार्टमेंट ने IBM से किराये में कमी करने को कहा लेकिन IBM अकेली कंपनी थी और उनकी मोनोपोली थी इसलिए उनके कान पर जु तक नहीं रेंगी और अनसुना कर दिया। और एक वजह थी IBM का नाम क्युकी IBM की सर्विस भरोसेमंद मानी जाती थी।
IBM की इस मोनोपोली
IBM की इस मोनोपोली को तोड़ने का काम किया तब के जॉइंट किलर के नाम से मशहूर जॉर्ज फर्नांडिस ने। जॉर्ज सोशलिस्ट नेता थे ट्रेड यूनियन के लीडर होते थे। 1960 में उन्होंने श्रमिको के साथ मिल कर कंप्यूटर के खिलाफ आंदोलन चलाया था। एक बार तो उन्होंने एक दिया था की भारत को ब्रा और टूथपेस्ट बनाने के लिए विदेशी टेक्नोलॉजी की जरुरत नहीं है। जॉर्ज की एंट्री हुयी 1977 में इमरजेंसी ख़तम होने के बाद के चुनाव में जब जनता पार्टी की सरकार बानी और जॉर्ज फर्नांडिस सूचना मंत्री बनाये गए। कुछ समय बाद उनको उद्योग मंत्रालय का काम भी सोपा गया। काम सँभालते हो जॉर्ज ने सब विदेशी कंपनी को नोटिस भेजना शरू कर दिया। कंपनी के लिए 1973 में हुए FERA कानून को अनिवार्य बनाया गया जिसमे बाकि सब कम्पनिया सहमत हो गयी सिर्फ IBM और कोका कोला को छोड़ के।
चूँकि कंप्यूटर सर्विस के लिए कोई अन्य ऑप्शन नहीं था इसलिए जॉर्ज के इस कदम से कंप्यूटर से सम्बंधित उद्योग थोड़े घबराये। IBM का जाना तय लग रहा था इसलिए सरकार से उन्होंने कोई बिच का रास्ता निकालने की सिफारिश की इसके बाद जॉर्ज फनांडिस ने IBM और कोका कोला के अधिकारियो को मिलने के लिए बुलाया। हैरानी के बात है की IBM अपने भारतीय हिस्से को किसी भारतीय कंपनी को बेचने के लिए तैयार हो भी गयी थी लेकिन इसके पीछे कारन कुछ और था। दरसल इंदिरा सरकार ने IBM की कारस्तानियों के देखते हुए विदेश से सेकंड हैंड कंप्यूटर के इम्पोर्ट की इजाजत दे भी दी थी और ये मशीन IBM की मशीनो से बेहतर काम कर रही थी।
IBM की एक मशीन में एक घंटे के काम का खर्चा 800 रुपये आता था जो इन दूसरी मशीनो में सिर्फ 250 आ रहा था। इन सब के चलते IBM का मुनाफा कम हो गया था और इसके चलते वो अपने बिज़नेस का ६०% हिस्सा भारतीय कंपनी को देने को तैयार हो गयी थी। लेकिन असली पैसा सर्विस और छोटे उपकरणों में था और उसे वो देना नहीं चाह रही थी।
कोका कोला की दिक्कत
दूसरी तरफ कोका कोला की दिक्कत उसकी सीक्रेट रेसिपी से जुडी थी। एक सीक्रेट सॉस था जो फाइनल प्रोडक्ट का ४% हुआ करता था लेकिन कोक का फेमस स्वाद उसी सॉस की वजह से आता था। कोका कोला उसे सीक्रेट रखना चाहता था। एक सवाल ये भी है की आज भी कोका कोला अपने रेसिपी को इतना सीक्रेट क्यों रखना चाहता है जबकि वो चाहे तो इसका पेटेंट भी करा सकता है। अपनी कांच वाली बोतल का तो उसने पेटेंट करा रखा है। इस सवाल के जवाब के लिए हमको थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा।
कोका कोला की शरुआत हुयी 1880 में। ज्होन पेम्बर्टन ने इसकी रेसिपी तैयार की। 1891 में एशा कैलेंडर ने इस रेसिपी को ख़रीदा और कोका कोला कंपनी की शरुआत की। 1919 ने अर्नेस्ट वुडरूफ ने कंपनी को खरीदने की पेशकश की और इसके लिए उनको बैंक से लोन चाहिए था और बैंक वाले लोन के लिए कुछ गिरवी रखने को बोल रहे थे। तब वुडरूफ ने गिरवी रखने के लिए रेसिपी के एक कॉपी दे दी। 1925 में गिरवी राखी हुयी रेसिपी को छुड़ाने के बाद इसको सालो तक इसको सीक्रेट रखा गया फिर 2011 में कोका कोला ने इसे एक वार्ट में रख दिया।
सीक्रेट रखने का जो तरीका है वो ये है की कंपनी के अनुसार एक वक्त में सिर्फ 2 लोगो को इसकी जानकारी होती है। ये दोनों लोग कभी एक साथ ट्रैवल नहीं कर सकते उसी तरह जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपती एक साथ कही आते जाते नहीं। इन दोनों में से किसी एक की मर्त्यु हो जाये तो दूसरे को अन्य उत्तराधिकारी चुनना होता है जो कंपनी को ही कोई एक व्यक्ति होगा। इसके अलावा इन दोनों की पहचान भी सीक्रेट रखी जाती है। कोका कोला अपनी रेसिपी को पेटेंट क्यों नई करता ये भी समझ लीजिये।
1893 में रेसिपी का पेटेंट कराया गया था लेकिन आगे चल कर उसमे कुछ बदलाव हुए और पुराने पेटेंट की अवधि समाप्त हो गयी। कंपनी नया पेटेंट इसलिए नहीं करवाती क्युकी पेटेंट नियमो के अनुसार 20 साल बाद रेसिपी सार्वजानिक हो जाएगी। इसलिए कोका कोला ने पेटेंट करवाने की बजाय सीक्रेट रखना ही सही समझा। हालांकि ये सब एक मार्केटिंग स्ट्रेटजी का हिस्सा है।
कोका कोला भारत के FERA कानून से इसलिए बचना चाहती थी क्युकी ऐसा करने से उसकी सीक्रेट रेसिपी बहार आने का खतरा था। भारत में कोका कोला बनाने के लिए जो सॉस और कंसन्ट्रेट आता था वो अमेरिका से इम्पोर्ट किया जाता था जिसके लिए इम्पोर्ट लाइसेंस लगता था नए कानून के अनुसार कोका कोला को ६०% हिस्सा भारतीय कंपनी को देना होता और साथ साथ टेक्निकल जानकारी भी साझा करनी होती। इस टेक्निकल जानकारी में कोका कोला की सीक्रेट रेसिपी भी शामिल थी जिसे वो किसी कीमत पर शेयर नहीं करना चाहते थे।
कोका कोला और IBM ने नए कानूनों का पालन करने की बजाय भारत से निकालने में बेहतरी समझी। IBM के जाने से भारत में विप्रो जैसे कंपनियों को अवसर मिल गया और वो काफी फली फूली। कोका कोला के जाने के बाद सॉफ्टड्रिंक के मार्किट में नए कई विक्लप भी सामने आये जैसे केम्पा कोला थम्सउप डुके और कई। यहाँ तक सरकार ने भी अपना कोला बनाया जिसे नाम दिया गया 77 जिसे सरकारी कोला भी कहा गया। सरकारी फ़ूड कंपनी मॉर्डन ने इसे बनाया था लेकिन ये कुछ खास नहीं चल पाया और बाद में बंद कर दिया गया।
1993 में कोका कोला ने भारत में फिर एंट्री की और उसके बाद का इतिहास हम सबको पता ही है।
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