आसमा इतनी बुलंदी पे इतराता है भूल जाता है की जमी से ही नजर आता है
वसीम बरेलवी का ये शेर विजय नगर साम्राज्य पे एक दम सटीक बैठता है। इतिहास के जानकारों की माने तो शदाशिवराय केवल नाम के ही राजा थे असली ताकत तो कृष्णा देव राय की दामाद रामराय के हाथो में थी। जिन्हे उस समय आलिया कह कर बुलाया जाता था। दरसल आलिया कन्नड़ भाषा का शब्द है जिसका हिंदी अर्थ होता है बेटी का पति। यु तो राजा शदाशिव राय भी गजब के शाशक थे जो दक्खन की ऊपर सल्तनतों को आपस में भिड़वा कर पुरे दक्षिणी भारत पर कब्ज़ा चाहते थे लेकिन जब खुद की किश्मत ख़राब हो तो दुसरो का क्या दोष। दखन की सल्तनतों को शदाशिव के मंसूबो का पता चल गया और सब आपस में दोस्ती कर ली जिसमे अहमदनगर , बीजापुर , गोलकोण्डा और बीदर शामिल थे। सब ने मिल कर शदाशिव के साम्राज्य विजय नगर पर हमला बोल दिया और शदाशिव की कमजोर रणनीति के कारन दक्षिण भारत के अंतिम हिन्दू साम्राज्य का अंत हो गया।
बहमनी सल्तनत दक्षिण के पहली सुन्नी सल्तनत थी मूल रूप रे फारस से सम्बंधित थी। १३४७ में अल्लाउदीन खिलजी के दरबारी के भतीजे जफ़र खान ने गुलबर्गा में इसकी निव रखी थी। जफ़र खान का असली नाम अल्लाउदीन बहमन शाह था जिसे हसन गंगू के नाम से भी जानते है ये सल्तनत उन युधो के लिए जानी जो मुख्य रूप से विजयनगर साम्राज्य से लड़े गए। साल १३४७ से लेके १५७० तक बहनमी सल्तनत ने दक्खन में खूब मनमानी की लूट, मारकाट, धर्म परिवर्तन। लेकिन साल १५०९ में स्थतिया तब बदली जब कृष्णा देव राय विजयनगर साम्राज्य के राजा हुए।
१५१८ के हुए युद्ध में कृष्णा देव राय ने बहनमी सल्तनत को बुरी तरह से हराया इससे बहनमी सल्तनत बिखर गयी और बिखर के पांच छोटी छोटी रियासतों में बदल गयी। और बानी हैदराबाद, गोलकोण्डा, बीदर, बीजापुर और अहमदनगर। विजयनगर साम्राज्य पर कृष्णा देव राय का शाशन बहुत छोटा रहा केवल २० साल का। लेकिन विजयनगर साम्राज्य पे ये काल बहुत महत्वपूर्ण था।
कृष्णा देव राय विजयनगर
कृष्णा देव राय बेलगाव पे हमला करने की बिछात बिछा रहे थे। बेलगाव उस समय आदिल शाह के कब्जे में हुआ करता था लेकिन १७ अक्टूबर १८२९ को अचानक कृष्णा देव राय को तेज बुखार आया और उनकी मर्त्यु हो गयी।
कृष्णा देव राय के बाद कई राजा आये जैसे अच्युत राय , वेंकट राय और फिर १५४६ को विजय नगर के राजा बने शदाशिव राय जो की इस्तिहासकारो के मुताबिक के कठपुतली राजा थे। उधर बहनमी साम्राज्य से टूट कर बानी रियासते विजय नगर से बदले की आग में झुलस रही थी। और इस आग की हवा देना का काम किया १५६३ के एक वाकये ने।
१५६३ में बीजापुर सल्तनत के सुल्तान अली आदिल शाह ने विजयनगर साम्राज्य के सामने रायचूर, मुग्दल और अदुनि के किल्लो को वापस देने की मांग रखी जो कृष्णा देव राय ने बहनमी सल्तनत को हरा कर जीते थे।
शदाशिव राय मन्तारणा करने अपने मंत्री राम राय के पास पहुंचे और राम राय ने आदिलशाह की मांग को ठुकरा दिया। इससे आदिल शाह भड़क गए और अपने साथी सल्तनतों की मीटिंग बुलाई जिसमे अहमदनगर के सुल्तान हुसैन निजाम शाह, गोलकोण्डा के सुल्तान और बीदर के सुल्तान मीटिंग में शामिल हुए। सबने एक होकर फैसला लिया की मौका देख कर विजयनगर साम्राज्य पे हमला बोल दिया जाये।
२९ दिसम्बर १५६४ को गठबंधन की सेना के एक टुकड़ी हमला बोलने के लिए भेजी लेकिन विजयनगर की विशाल सेना ने चंद घंटो में उस सेना को उलटे पैर भागने पे मजबूर कर दिया। सल्तनतों को महसूस हुआ की उनकी सेना विजय नगर को घुटनो पे लाने के लिया अपर्याप्त है तो तय हुआ की कुछ जुगत भिड़ानी पड़ेगी और चल का सहारा लेना पड़ेगा। जब लगा की विजय नगर को सीधे युद्ध में हराम मुमकिन नहीं है तो इन्होने सहारा लिया चल से युद्ध जितने का। १५ जनवरी १५६५ को गठबंधन सेना के कमांडर ने विजयनगर के कमांडर को एक चिट्टी भेजी। चिट्टी में लिखा की हमारी सेना अभी इतनी तैयार नहीं है की विजय नगर की विशाल सेना का मुकाबला कर सके इसलिए हम अपनी सेना वापस ले जा रहे है और निकट भविष्य में हमला करने का हमारा कोई इरादा नहीं है
चिट्टी को राजा शदाशिव राय के सामने पेश किया गया और शदाशिव का दिल बाग बाग हो गया और पुरे नगर में उत्सव के एलान भी हो गया। लेकिन शदाशिव की ये ख़ुशी चंद दिन भी नहीं टिक सकी और जनवरी १५६५ के दूसरे हफ्ते में गठबंधन के सेना ने विजय नगर पे हमले शरू कर दिए। विजय नगर की फौज जब तक शम्भालती तब तक २३ जनवरी आते आते ये हमले और भी तेज हो गए।
तालीकोटा युद्ध
२३ जनवरी १५६५ को दोनों सेनाओ के बिच निर्णायक युद्ध छिड़ गया इस युद्ध को तालीकोटा युद्ध के आलावा राक्षशी तांगड़ी का युद्ध और बननी हट्टी के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकी ये युद्ध कर्णाटक के इन तीनो जगह पर हुआ था। तालीकोटा गांव उत्तरी कर्णाटक में बीजापुर से करीब ८० किलोमीटर दूर कृष्णा नदी के किनारे पे है राक्षशी, तांगड़ी और बननी हट्टी गांव भी तालीकोटा के करीब ही है।
आमने सामने के युद्ध के शरुआत में लगा की सुलतानो की सेना विजय नगर की सेना से हार रही है । विजय नगर पैदल सेना के कमांडर वेंकट दरी के अगुवाई में एक टुकड़ी ने सुलतानो के सेना पे प्रचंड हमला किया सामने था कमांडर वारिज शाह। लगा की अब युद्ध समाप्त हो जायेगा और विजय नगर साम्राज्य की जीत हो जाएगी लेकिन एक और धोखा होना बाकि था दरसल गठबंधन सेनाओ का यही मास्टर प्लान था। विजय नगर सेना के २ कमांडर थे गिलानी बंधू एक नाम नूर खान और दूसरे का नाम बिजली खान था। ये विजय नगर सेना के मुस्लिम टुकड़ी का प्रतिनिधित्व ये करते थे इन दोनों को गिलानी बंधू के नाम से जाना जाता था। इन्ही गिलानी बंधुओ से सुल्तानों की बात तय हो गयी थी वो थी युद्ध में विजय नगर की सेना को धोखा देने की बात।
शदाशिव राय को इसकी भनक तक नहीं लगी। पहले से तय था की अगर सुल्तानों की सेना हारने लगे तो वे गिलानी बंधुओ के एक सिग्नल देगी और गिलानी बंधू अपनी सेना की टुकड़ी ले कर अपना पला बदलेंगे और ऐसा भी हुआ भी। जब सुल्तानों के सेना ने गिलानी बंधुओ को इशारा किया और दोनों ने अपनी सेना की टुकड़ी और तोपों के साथ पाला वाकई में बदल लिया। इन्होने सुल्तानों के एक लाख सेना के साथ विजय नगर की सेना को काटना चालू कर दिया और एक ही झटके में कमजोर पड़ रही सुल्तानों की सेना को हावी कर दिया। शाम होते होते सुल्तानों की सेना विजय नगर की सेना को मारती हुयी मंत्री राम राय तक पहुंच गयी और अहमदनगर के सुल्तान हुसैन अहमद शाह ने राम राय की गर्दन काट दी और आसमान की तरफ देख के जोर से चिल्ला के बोले “ए खुदा मेने अपना बदला पूरा कर दिया अब आगे जो भी सजा देना चाहो दो” यहाँ आदिल शाह कृष्णा देव राय द्वारा गिरायी गयी बहनमी सल्तनत की बात कर रहे थे। राम राय को मोत के घाट उतर देने के बाद विजयनगर साम्राज्य घुटनो पे आ गया। विजय नगर साम्रज्य का एक बड़ा हिस्स्सा इस युद्ध के बाद छीन लिया गया।
उस समय आदिल शाह के पास एक तोप हुआ करती थी ये तोप एक तुर्क मोहमद बिन हुसैन रूमी ने १५४९ में बनायीं थी। तालीकोटा के युद्ध में खूब इस्तेमाल की गयी थी इससे जुड़ा एक किस्सा ये भी है की बीजापुर की सेना इस तोप की मदद से दुश्मन की सेना पे ताम्बे के सिक्को की बौछार किया करती थी। जब सिक्के विजयनगर सेनिको पे दागे जाते तब सैनिक सिक्को को बटोरने में लग जाते और मारे जाते। युद्ध के बाद सुल्तान के इस तोप का नाम दिया “मालिक ए मैदान”
२७ जनवरी के दिन विजयनगर की राजधानी हम्पी में जब सुल्तानों की सेना घुसी तब मंत्री राम राय के सर को भले में फसा कर पुरे शहर में जुलुस निकाला गया और अगले पांच महीनो तक खूब लूट पाट, स्त्रियों का बलात्कार और मंदिर ध्वस्थ किये गए। इतने से इन सुल्तानों का दिल नहीं भरा तो पुरे हम्पी शहर में आग लगा दी गयी।
Hampi – Vijaynagar
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