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  • Writer's pictureSushil Rawal

बाजी प्रभु देशपांडे

बाजी प्रभु देशपांडे मराठा इतिहास में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण नाम है। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साहसी, निडर और देशभक्ति से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले सरदार थे।

बाजी के पिताजी, हिरडस, मावल के देश कुलकर्णी थे। बाजी की वीरता की देखकर ही महाराज शिवाजी ने उनको अपनी युद्धसेना में उच्चपद पर रखा। ई.स. १६४८ से १६४९ तक उन्होंने शिवाजी के साथ रहकर पुरंदर, कोंडाणा और राजापुर के किले जीतने में भरसक मदद की। बाजी प्रभु ने रोहिडा किले को मजबूत किया और आसपास के किलों को भी सुदृढ़ किया। इससे वीर बाजी को मावलों का जबरदस्त कार्यकर्ता समझा जाने लगा। इस प्रांत में उसका प्रभुत्व हो गया और लोग उसका सम्मान करने लगे। ई. सन् १६५५ में जवाली के मोर्चे में और इसके बाद डेढ़ दो वर्षों में मावला के किले को जीतने में तथा किलों की मरम्मत करने में बाजी ने खूब परिश्रम किया।

ई. सन् १६५९ के नवंबर की दस तारीख को अफ़जल खाँ की मृत्यु होने के बाद पार नामक वन में आदिलशाही छावनी का नाश भी बाजी ने बड़े कौशल से किया और स्वराज्य का विस्तार करने में शिवाजी की सहायता की। ई. सन् १६६० में मोगल, आदिलशाह और सिद्दीकी इत्यादि ने शिवाजी को चारों तरफ से घेरने का प्रयत्न किया। पन्हाला किला से निकल भागना शिवाजी के लिए अत्यंत कठिन हो गया। इस समय बाजीप्रभु ने उनकी सहायता की। शिवाजी को आधी सेना देकर स्वयं बाजी घोड की घाटी के दरवाजे में डटा रहा। तीन चार घंटों तक घनघोर युद्ध हुआ। बाजी प्रभु ने बड़ी वीरता दिखाई। उसका बड़ा भाई फुलाजी इस युद्ध में मारा गया। बहुत सी सेना भी मारी गई। घायल होकर भी बाजी अपनी सेना को प्रोत्साहित करता रहा। जब शिवाजी रोगणा पहुँचे तो उन्होंने तोप की आवाज से बाजी प्रभु को गढ़ में अपने सकुशल प्रवेश की सूचना दी।

शिवाजी का साथ

बाजी प्रभु देशपांडे ने आदिलशाही नामक राजा के सेनापति अफ़ज़ल ख़ान को शिकस्त देने में अत्यंत ही अहम भूमिका अदा की थी छत्रपति शिवाजी अफ़ज़ल ख़ान से अपने होने वाले द्वंद्व युद्ध के अभ्यास के लिए एक अति बलवान और अफ़ज़ल जितने ही लम्बे चौड़े प्रतिद्वंदी को ढूँढ रहे थे और यहीं पर बाजी प्रभु अपने साथ सूरमा मराठा योद्धाओं की एक खेप लेकर आये, जिनमें विसजी मुरामबाक भी था, जो अपनी कद काठी में अफ़ज़ल ख़ान जितना ही विशालकाय था।

शिवाजी और बाजी प्रभु के नेतृत्व में मराठा सेनाओं ने अपनी कूटनीतिक और सामरिक चातुर्य से अफज़ल खान को मृत्यु के द्वार पहुँचा दिया और इस प्रबल जोड़ी ने आदिलशाह की अति विशाल सेनाओं तक की नाक में दम कर दिया। वस्तुतः मराठा सेनाएं अपनी छापामार और घात लगाकर वार करने की क्षमता के कारण युद्धभूमि में इस्लामी हमलावरों के खिलाफ बेहद ही सफल रही।

साथ ही, आदिलशाह जैसे अनेकों मुग़ल और मुसलमान शासकों पर समूल विध्वंस कर देने वाले आक्रमणों के द्वारा मराठा सेनाओं ने अपने वर्षों से ज्वलंत स्वप्न को पूर्ण किया और इन शासकों द्वारा भारतवर्ष के मूल निवासी हिन्दू जनसंख्या पर किये गए अत्याचारों का भरपूर उत्तर दिया।

यही नहीं, स्वयं शिवजी ने भी बाजी प्रभु के अभूतपूर्व उत्साह और सामरिक सूज बूझ को देझते हुए उन्हें अपनी सबल सेना के दक्षिणी कमान को सौंपा जो की आधुनिक कोल्हापुर के इर्द गिर्द उपस्थित था । बाजी प्रभु ने आदिलशाही नमक राजा के सेनापति अफज़ल खान को शिकस्त देने में एक अत्यंत ही अहम भूमिका अदा करी थी ।

हुआ कुछ यूँ की छत्रपति शिवाय अफज़ल खान से अपने होने वाले द्वंद्व युद्ध के अभ्यास के लिए एक अति बलवान और अफज़ल जितने ही लम्बे चौड़े प्रतिद्वंदी को ढून्ढ रहे थे और यहीं पर बाजी प्रभु अपने साथ, सूरमा मराठा योद्धाओ की एक खेप लेकर आये, जिनमें विसजी मुरामबाक भी था जो अपनी कद काठी में अफज़ल खान जितना ही विशालकाय था ।

बस फिर क्या था, शिवाजी और बाजी प्रभु के नेतृत्व में मराठा सेनाओ ने अपनी कूटनीतिक और सामरिक चातुर्य से अफज़ल खान को मृत्यु और इस प्रबल जोड़ी ने आदिल शाह की अति विशाल सेनाओ तक के नाक में दम कर दिया । वस्तुतः, मराठा सेनाएं अपनी छापामार और घात लगाकर वार करने की क्षमता के कारण युद्धभूमि में इस्लामी हमलावरों के खिलाफ बेहद ही सफल रहे।

साथ ही, आदिल शाह जैसे ही अनेको मुग़ल और मुसलमान शासको पर समूल विध्वंस कर देने वाले आक्रमणों के द्वारा मराठा सेनाओ ने अपने वर्षो से ज्वलंत स्वप्न को पूर्ण किया और इन शासको द्वारा भारतवर्ष के मूल निवासी हिन्दू जनसँख्या पर किये गए अत्याचारों का भरपूर उत्तर दिया ।

वीरगति

उधर शिवाजी महाराज की सेना को भी विशालगढ़ में पहले से मौजूद एक और मुग़ल सरदार की सेना का सामना करना पड़ा। उनसे जूझते हुए लगभग सुबह ही हो चली थी और सूर्योदय तक आखिरकार शिवाजी ने उन तीन तोपों को दाग दिया जो बाजी प्रभु को एक इशारा थी। बाजी प्रभु यद्यपि तब तक जीवित तो थे, परन्तु लगभग मरणासीन हो चुके थे। उनके सभी साथी सैनिक हर हर महादेव का उद्घोष करते हुए बाजी प्रभु देशपांडे को उठाकर दर्रे के पार पहुँच गए। परन्तु तभी, एक वीर, विजयी मुस्कान के साथ बाजी ने अपनी अंतिम सांस ली और परमात्मा में लीन हो गए।

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