top of page

चीन को चकमा दे के भारत कैसे आये दलाई लामा

  • Writer: Sushil Rawal
    Sushil Rawal
  • Mar 31, 2022
  • 5 min read

तुम्हारा चेहरा देख के मुझे एहसास हुआ है की में भी बूढ़ा हो चूका हु। 

दलाई लामा के मुँह से ये शब्द निकले जब २०१७ में वो उत्तर पूर्व भारत के दौरे पर थे और यहाँ उनकी मुलाकात हुयी नरेंद्र च्नद्र से। और ७९ साल के नरेंद्र को देखते ही दलाई लामा को मार्च १९५९ याद आ गया जब वो चीन के सेनिको से बचते बचाते भारत आये थे। और तवान्ग में उनकी अगवानी की थी भारतीय सेनिको ने नरेंद्र उन्ही सेनिको में से एक थे।

१९५९ का बसंत और शनिवार की आधी रात ज्होन गरिनि के घर एक घंटी बजी। गरिनि अमेरिका के मेरीलैंड राज्य में रहते थे और यही सबर्बन इलाके में उनका घर था। गिरींन ने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज आयी ओपइन आ गया है। गिरींन तुरतं उठे और तैयार होक अपने दफ्तर की और निकल गए। मेरीलैंड के घर में रहने वाले अपने पड़ोसियों के लिए सिर्फ एक सरकारी मुलाजिम थे लेकिन उन्हें नहीं पता था की गिरींन दरसल CII के लिए काम करते है।

गिरिनि CII की एक यूनिट तिब्बत टास्क फाॅर्स का हिस्सा थे तब अमरीकी जनता को तिब्बत का उतना अता पता नहीं था। गरिनि के काम को भी कुछ खास तवज्जो मिलती नहीं थी। CII में मिशन पिग्स ऑफ़ बे की तैयारी चल रही थी और क्यूबा अमेरिका के लिए तिब्बत से कही जयादा मायने रखता था उस समय।

उस रात से गरिनि के लिए सब कुछ बदल गया। अगले कुछ हफ्ते में पूरा अमेरिका और पूरी दुनिया तिब्बत से वाकिफ होने वाली थी। ओपइन शार्ट फॉर्म था ऑपरेशन इमिडिएट का। ये CII में ऑपरेशन की सेकंड केटेगोरी हुआ करती थी। गिरिनि के लिए सन्देश आया था अमरिकन ट्रेनेड फाॅर्स का तो तिब्बत में चीनी सेनिको से लड़ रही थी। गरिनि ने तुरंत एक केबल तैयार कर भारत भिजवाया और भारत में ये केबल पंहुचा तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के पास और इस केबल में परमिशन मांगी गयी थी दलाई लामा के भारत की सीमा में प्रवेश की।  

भारत कैसे आये दलाई लामा

भारत कैसे आये दलाई लामा

१९४९ में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया था और १९५२ में तिब्बत और चीन के बिच एक समझौता हुआ जिसके तहत तिब्बत में दलाई लामा की सरकार तो रही लेकिन चीनी आधिपत्य के तले। धीरे धीरे चीन ने और दखल देना शरू किया। कहने को दलाई लामा के दो महल थे एक सर्दियों का और एक गर्मियों का। लेकिन कही भी आजादी नहीं थी सब कुछ चीन के आदेश पे चलता था। और इसकी वजह से तिब्बत में भी विद्रोह भड़कने लगा और उसे दबाने के लिए चीनी सैनिक हर समय तिब्बत में मौजूद रहते थे।

कैलेंडर में १० मार्च १९५९ की तारीख थी जब चीन के जनरल झाग चेंगडु ने दलाई लामा को एक निमत्रण भेजा। दरसल निमंत्रण की आड़ में एक साजिश थी। जनरल झांग ने एक नर्त्य पर्दशन का आयोजन किया था लेकिन निमत्रण के साथ एक शर्त रखी थी जिसके अनुसार दलाई लामा को अपने बॉडीगार्ड के बिना आना पड़ेगा। दलाई लामा के सलाहकारों ने उनको वह जाने से तो रोका ही साथ ही जिस दिन कार्यकर्म का आयोजन हुआ उस दिन हजारो तिब्बतियों ने दलाई लामा के महल को चारो तरफ से घेर लिया। उनको ये डर था की चीनी फौज दलाई लामा को अगवा न कर ले।

इसके बाद दलाई लामा के सहयोगियों ने सलाह दी की दलाई लामा को तिब्बत से निकल जाना चाइये। लेकिन सबसे बड़ा सवाल था की चीनी सेनिको की आँखों में धूल झोंक के निकला कैसे जाये और निकले तो फिर जाये कहा। कही अगर जाना संभव था तो सिर्फ भारत था। और वह तक पहुंचने के लिए भी हफ्तों का सफर तय करना पड़ता था।

१७ मार्च की रात दलाई लामा के समर पैलेस में मंत्रणा चल रही थी। उनके मुख्य बॉडीगार्ड दल के कमांडर फ्ला और कुशिंग दीपों साथ में थे और जब सारा प्लान तैयार हो गया तो फ्ला ने अपनी घडी की तरफ देखा और सब लोगो को घडी मिलाने को कहा गया।

दलाई लामा के मुख्य रसोईये और उनकी टीम सबसे पहले रवाना हुयी।  फिर फ्ला ने लहासा में भारतीय उच्चायक्त को एक पत्र लिखा लेकिन ये पत्र कभी नहीं पंहुचा और एक पत्र भेजा खम्पा विद्रोहियों को जो दक्षिण तिब्बत में मौजूद थे। उनसे कहा गया की एक खास मेहमान के आने का इंतजार करिये। 

भारत कैसे आये दलाई लामा

भारत कैसे आये दलाई लामा

दलाई लामा ने एक सिपाही के भेस धरा और लहासा से बहार निकल गए। उनके साथ उनकी माँ छोटे भाई बहिन और कुल २० अधिकारी और थे। इसी के साथ दलाई लामा की तिब्बत से बहार निकल कर भारत आने की यात्रा। हर समय खतरा बना रहता था तब भी हिमलाय के पैदल रास्तो को पार करते हुए वो भी बिना टोर्च और मशाल जलाये क्युकी चीनी सैनिक लगातार उनका पीछा कर रहे थे। वो सिर्फ रात को यात्रा करते और दिन में तिब्बती गावो में चुप जाते। अगले दो दिन तक दुनिया में किसी को खबर नहीं थी की दलाई लामा है कहा। कई लोग तो मन चुके थे की उनकी मर्त्यु हो गयी है। १९ मार्च तक चीनी सेना का लहासा पर कब्ज़ा हो गया। चीनी सेना और तिब्बतियों के संघर्ष में करीब २००० तिब्बती मारे गए। और इसी दौरान दलाई लामा के महल पर ८०० गोले दाग कर इसको निस्तोनाबूत कर दिया गया।

इसके बाद तिब्बत की सरकार को भंग कर पुरे तिब्बत को पीपल रिपब्लिक ऑफ़ चीन में मिला लिया गया। दलाई लामा अभी भी चीन के लिए सरदर्द साबित हो सकते थे इसलिए चीनी सैनिक दिन रात उनकी खोज में लगे रहे। २६ मार्च को दलाई लामा और उनका ग्रुप लुत्से जोंग पंहुचा। यहाँ से मैकमोहन लाइन (भारत चीन सीमा ) सिर्फ चंद दिनों की दुरी पर थी। रात को आगे बढे और झोरा गांव होते हुए कारपो दर्रे तक पहुंच गए। कारपो पहुंचने के बाद उन्होंने देखा की एक प्लेन उनके ऊपर से गुजर गया। तब दलाई लामा समझ गए की अब चीनियों को उनकी खबर लग जाएगी और किसी भी वक्त उन पर हवाई हमला हो सकता था। 

भारत कैसे आये दलाई लामा

भारत कैसे आये दलाई लामा

तब दलाई लामा को लगा की अब किसी भी हालत में जल्द से जल्द भारत की सीमा में प्रवेश करना ही होगा। तब तवान्ग सीमा के पास असम राइफल का एक पोस्ट हुआ करता था। भारत सरकार ने अधिकारियो के भेज कर ये निर्देश दिया की दलाई लामा को सम्मानजनक तरीके से भारत के सीमा में आने दिया जाये। और ३१ मार्च १९५९ के दिन दलाई लामा भारत की सीमा में प्रवेश कर गए। यहाँ भारतीय अधिकारियो ने उन्हें प्रधानमंत्री नेहरू एक टेलीग्राम दिया। असम राइफल की पोस्ट से दलाई लामा को तवान्ग भेजा गया ताकि वो आराम कर सके।

अपनी आत्मकथा में दलाई लामा लिखते है की यहाँ उनका अच्छा आदर सत्कार हुआ और बहुत दिनों बाद उन्हें ऐसा लगा की वो आजादी की हवा में सास ले रहे है। कुछ दिनों तवान्ग में रहने के बाद दलाई लामा अपने परिवार सहित उत्तराखंड के मसूरी पहुंचे और यहाँ उनकी मुलाकात प्रधानम्नत्री नेहरू से हुयी। दलाई लामा ने ८००० तिब्बती शरणार्थियो को भारत आने देने की मंजूरी मांगी और नेहरू तैयार हुयी और उसके बाद हजारो तिब्बती भारत आये और यहाँ अलग अलग इलाको में बस गए।

आगे चल कल दलाई लामा ने धर्मसाला हिमाचल प्रदेश में निर्वाचित तिब्बत सरकार का गठन किया जो किअभी भी वही से चलती है। और फिर दलाई लामा लोट कर कभी तिब्बत नहीं गए। तिब्बत में आज भी उनकी तस्वीर रखना अपराध है। 

Comments


Thanks for subscribing!

© 2023 by Sushil Rawal. All Rights Reserved.

  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • Linkedin
  • Youtube
  • Pinterest
bottom of page