top of page

एक नेता जो पैदल चलते हुए मुख्यमंत्री बना – शिवराज सिंह चौहान 

  • Writer: Sushil Rawal
    Sushil Rawal
  • Jan 2, 2022
  • 7 min read

साल २०१४ – राष्ट्रीय सवयम सेवक संघ १९२५ से जिस काम में लगा हुआ था वो नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद उसका एक पड़ाव पूरा हुआ। लेकिन संघ सरकारों की तरह ५ साल की इकाई में नहीं सोचता वो सोचता है दशकों में। तो २०१४ खुद को दोहराता रहे इसलिए जरुरी था की संघ की नर्सरी से मोदी के सब और भी काबिल लोग निकले।

उसमे से एक नाम है बात बात पे खुद को किसान का बेटा बताने वाले शिवराज सिंह चौहान का।

भोपाल एक छोटी से तहसील हुआ करता था जिल्ला लगता था सीहोर। इसी सीहोर के जेत गांव में ५ मार्च १९५९ को प्रेम सिंह चौहान और सुन्दरबाई चौहान के यहाँ शिवराज का जन्म हुआ। १६ साल के उम्र में अखिल भारतीय विधार्थी परिषद् से जुड़ गए। कॉलेज गए तो स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष हुए फिर भोपाल की बरकतुल्ला खा यूनिवर्सिटी से फिलीशोपि में MA किया यहाँ शिवराज पहली बार शिखर पे पहुंचे और गोल्ड मैडल हासिल किया।

शिवराज सिंह चौहान

शिवराज सिंह चौहान

शिवराज सिंह एमर्जेन्सी में जेल भेजे गए इन्हे भी कैलाश जोशी के तरह जेल फली बाहर आकर तरक्की करते गए और ABVP के संगठन मंत्री बना दिए गए। फिर शिवराज के बनाया गया मध्य प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष और शिवराज का असली मूवमेंट आया १९८९ में। इस साल युवा मोर्च ने क्रांति यात्रा निकली और जब यात्रा भोपाल पहुंची तो इसमें १ लाख युवा पहुंचे और इस भीड़ ने शिवराज को बना दिया नेता।

पद यात्रा खूब करते थे तो पाव पाव वाले भईया के नाम से मशहूर हो गए। और इस नेता पर नजर पड़ी तब के भावी और पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दर लाल पटवा की। १९९० के मध्य प्रदेश के चुनाव में शिवराज ने युवा मोर्चा वालो २३ टिकटे दिलवाई। शिवराज का नाम तो तय था लेकिन वो बुधनी से चुनाव लड़ेंगे इसकी भूमिका बनायीं विदिशा से सांसद बने राघवजी ने। राघवजी की दिल्ली की राह पकड़नी थी तो वो अपने इलाके में अपने लोग बिठाना चाहते थे। शिवराज का सितारा जब आगे बढ़ रहा तो तब राघवजी की उनसे करीबी रही थी। तो राघवजी की सलाह रही की शिवराज बुधनी से चुनाव लड़ेंगे। बुधनी भाजपा के लिए मुश्किल सीट थी लेकिन शिवराज लड़े और जीते।

१९९१ के लोकसभा चुनाव में राघवजी ने फिर विदिशा से परचा भरा लेकिन परचा भरने के एक रोज पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने भी विदिशा से परचा भर दिया अडवाणी की युक्ति थी ये की सुरक्षित सीट से वाजपेयी जी को चुनाव लड़वाया जाये। विदिशा एक ऐसी ही सीट थी राघवजी को अटल के लिए जगह बनानी ही थी , अटल जी मध्य प्रदेश से जीते ये भाजपा के लिए नाक का सवाल था इसलिए अटल जी के चुनाव में काम करने के लिए भेजा गया शिवराज जैसे झुझारू नेताओ को।

राघवजी

राघवजी

अटल जित गए लेकिन उन्होंने लखनऊ सीट अपने पास राखी और विदिशा में उपचुनाव हुआ और इस चुनाव में भाजपा के टिकट पे लाडे शिवराज सिंह चौहान जिसका गत चुनाव ने बढ़ चढ़ कर किया गया काम भाजपा में नजर में आ गया था। अटल से शिवराज का ये परिचय आने वाले वक़्त में शिवराज को बड़ा काम आया। सांसदी जित कर शिवराज दिल्ली गए तो दीदी की टीम में शामिल गए। टीकमगढ़ से आने वाली उमा दीदी – उमा भारती ,

उमा भारती युवा मोर्चा की अध्यक्ष रही थी और गोविंदाचार्य की करीबी थी तो उमा भारती मार्फ़त शिवराज का परिचय गोविंदाचार्य से हुआ। वो देश भर से भाजपा के लिए ओबीसी चहरे तैयार कर रहे थे। सियासत की भाषा में इसे सोशल इंजिनयरिंग कहा जा रहा था। शिवराज गोविंदाचार्य को जम गए नतीजा शिवराज अखिल भारतीय युवा मोर्च के राष्ट्रीय महासचिव बन गए। इसके बाद शिवराज लगातार विदिशा लोकसभ से चुनाव जीतते रहे।

लेकिन उन्हें युवा मोर्चा और संगठन के कामो में व्यस्त रखा गया वो न दिल्ली में उठे और न मध्य प्रदेश लोट पाए क्युकी दोनों जगह पे उनकी सक्रियता को काबू में रखा गया। लेकिन इस वक़्त का शिवराज ने बखूबी इस्तेमाल किया।

शिवराज सिंह

केंद्र की राजनीती में जितने बारे नाम थे उनसे राब्ता कायम किया। अरुण जेटली , लाल कृष्ण अडवाणी , और प्रमोद महाजन। इस परिचय ने काम किया। सं २००० में शिवराज एक और चिढ़ी चढ़े भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने इसी साल शिवराज विक्रम वर्मा के खिलाफ मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का चुनाव लड़े कुशाभाउ ठाकरे की नारजगी मोल लेकर। और ये बात भी चल पड़ी के शिवराज दिल्ली से भोपाल आने में खाशी रूचि रखते है।

१९९० में मध्य प्रदेश के चुनाव में भाजपा का स्कोर था ३२० मेसे २२० लेकिन उसके बाद पार्टी इसकदर गुटबाजी का शिकार हुयी की दिग्विजय को चुनाव जितने के लिए जयादा कुछ नहीं करना पड़ा। उसके बाद २००३ में उमा भारती को भेजा गया और उमा भारती का उठान पूरी दुनिया ने देखा लेकिन शिवराज ने बंद दरवाजो के पीछे तररकी की। वो दिल्ली में ही रहे लेकिन उन्हें प्रमोशन देकर संगठन में राष्ट्रीय मंत्री बनाया गया।

उमा भारती ने चुनाव से पहले एक सक्लप पत्र जारी किया था और इसे तैयार करने वालो में एक थे कप्तान सिंह सोलंकी गोरी , शंकर शेजवाल , कैलाश जोशी , अनिल माधव दवे और शिवराज सिंह चौहान। चुनाव में शिवराज से कहा गया की वो राघोगढ़ में दिग्विजय के खिलाफ लड़े और लोगो को लगा की शिवराज की शक्रियता दिखाने के अपराध में शहीद किया जा रहा है। क्युकी बाकि मध्य प्रदेश में दिग्विजय को बंटाधार कहा गया लेकिन राघोगढ़ में दिग्विजय तब भी राजासाहब ही कहलाते थे और उनकी तूती बोलती थी।

उमा भारती

उमा भारती

शिवराज का परचा भरवाने अरुण जेटली , उमा भारती और कैलाश जोशी पहुंचे। भाजपा में शायद किसी को लगा होगा की शिवराज ये चुनाव जीतेंगे और हुआ भी वही शिवराज २१ हजार १६४ वोट से चुनाव हर गए। लेकिन शिवराज को दिग्विजय की टक्कर में खड़ा करके पार्टी ने संदेश दे दिया था शिव ही सुन्दर है।

२००३ में उमा भारती मुख्यमंत्री भी नहीं बनी थी और उनकी शक्रियता भाजपा में कई नेताओ के खलने लगी थी। पटवा गट उमा के पहुंचने से पहले ही उनका विरोध कर रहा था लेकिन वोट भाजपा के चहरे और उमा के तेवर पे ही मिला था और ये उमा भी जानती थी और भाजपा भी । लेकिन तिरंगा विवाद ने उमा को एक बार जो सत्ता से बहार किया उसमे विरोधियो को मौका मिल गया। चूँकि उमा ने कार्यकाल के दौरान जयादा दोस्त नहीं बनाये थे इसलिए तिरंगा विवाद से उमा को छुटकारा मिला तब भी उन्हें CM पद पे वापसी के लिए जरुरी मदद नहीं मिली।

उमा को लगा था की बाबू लाल गौर उनके खड़ाऊ रख के राज करेंगे और समय पे ख़ुर्शी खाली भी करेंगे लेकिन बाबूलाल ने जड़े पकड़ ली और उमा को बताया जाने लगा की उन्हें इंतजार करना चायिय। बुरी तरह बिफरी हुयी उमा अपने पाले के सांसद और विधायक लेकर शक्ति प्रदशन करने लगी। २००५ के दशहरे को उमा के घर विधायकों का मिलान समारोह हुआ ९२ विधायक खुद आये १८ ने फैक्स कर समर्थन दिया। अगर उम्र भारती राज भवन में इन विधायकों की परेड करा देती तो सरकार गिर जाती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मध्य प्रदेश की राजनीती में उमा भारती के ताबूत में ये आखरी कील थी उस करियर के दौर की।

इसके बाद चुन चुन कर विधायकों को तोडा गया उधर भाजपा हाई कमान ने प्रदेश में अपने भविष्य को टटोलना शरू कर दिया। बाबू लाल गौर की भूमिका पूरी हो चुकी थी और पार्टी एक ऐसा चेहरा चाहती थी जो सूबे में पार्टी को एक सूत्र में बांध सके सरकार भी चला सके और चुनाव भी जीता सके

मई २००५ में भाजपा के संगठन के चुनाव होने थे तय था की शिवराज महामंत्री से प्रमोट हो कर अब प्रदेश अध्यक्ष बन जायेंगे। इसलिए भी की कैलाश जोशी उम्र के कारन दुबारा अध्यक्ष नहीं बनते और इसलिए भी की पार्टी ने उमा भारती को बिहार चुनाव में काम करने भेज दिया था। रही सही कसर तब पूरी हो गयी जब भाजपा की गुटबाजी पे सुन्दर लाल पटवा का एक लेख अख़बार में छपा जिसकी आखरी पंक्ति थी – चुके मत चौहान

उमा भारती ने गौर के खिलाफ केम्पेन तेज किया तो एक दिन शिवराज विधान सभा की कार्यवाही देखने पहुंच गए। विधायक उन्हें देख के मेज पीटने लग गए बहार निकले तो विधायक भी साथ निकले और इर्द गिर्द जमा हो गए। भाजपा का संसदीय बोर्ड समझ गया की समय आ गया है।

बाबू लाल गौर

बाबू लाल गौर

अरुण जेटली ने बाबू लाल गौर को फ़ोन मिलाया गौर इंदौर के राजवडा में दुर्गा वाहिनी के कार्यक्रम में थे। शोर था गौर ने कहा आवाज नहीं आ रही लेकिन वो सन्देश समझ गए। शिवराज सिंह चौहान भोपाल आ रहे थे उमा को मालूम चला तो उन्होंने गौर से कहा आप कसम से बंधे है इस्तीफा मत दीजिये। गौर जानते थे की उनके पास शिवराज के लिए जगह बनाने के अलावा कोई चारा नहीं है इसलिए उमा ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए मना किया तो उन्होंने सपथ में टेक्निकल समस्या बता दी। उमा भागते भागते दिल्ली पहुंची वहा खाने के टेबल के झूठे बर्तनो के सामने प्रमोद महाजन ने उमा से कह दिया की मुख्य मंत्री शिवराज ही बनेंगे बस ।

दिल्ली से इशारा होते ही शिवराज भोपाल शताब्दी में बैठ गए रेलगाड़ी जब भोपाल पहुंची तब स्टेशन पे ६० विधायक शिवराज की अगवानी के लिए खड़े थे। इसी दिन भाजपा प्रदेश मुख्यालय यानि दिन दयाल उपाध्याय भवन में भाजपा की मीटिंग हुयी दिल्ली से अरुण जेटली , प्रमोद महाजन , राजनाथ सिंह और संगठन महामंत्री संजय जोशी आये। सिर्फ विशेष उपस्थिति देने नहीं लेकिन किसी बगावत की गुंजाइश खतम करने। बैठक शरू हुयी थोड़ी ही देर में उमा खड़ी हो गयी बोली विधायक दल का नेता वोटिंग से चुनो। संजय जोशी ने लगभग धकिया कर उन्हें बिठा दिया। १७३ विधायक अपनी पूर्व मुख्यमंत्री के साथ ऐसा होता देख सन्न रह गए। उमा अपने बचे खुशे विधायकों के साथ बहार कर दी गयी।

उमा के समर्थको ने दिन दयाल भवन का गेट तोड़ दिया पुलिस को लाठिया भाजनी पड़ी। उमा भारती बहार आ कर गुस्से में बोलते बोलते एक लाल बत्ती अम्बेसेडर पर चढ़ गयी और चेतावनी दी की वो अपने अपमान का बदला लेगी। लेकिन समय आने पर किसी चीज को रोका नहीं जा सकता।

१५४ विधायकों ने शिवराज को मुख्यमंत्री चुन लिया।

Comments


Thanks for subscribing!

© 2023 by Sushil Rawal. All Rights Reserved.

  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • Linkedin
  • Youtube
  • Pinterest
bottom of page